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मई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वित्तीय प्रबन्ध की परिभाषा

वित्तीय प्रबन्ध की परिभाषा प्रमुख वित्त विशेषज्ञों द्वारा दी गई परिभाषाएं निम्नलिखित हैं - हावर्ड एवं उपटन  (Haward and Upton)) : वित्तीय प्रबन्ध से आशय नियोजन एंव नियंत्रण कार्यो को वित्त कार्य पर लागू करना है। जे. एल. मैसी  (J.L. Massie) : वित्तीय प्रबन्ध एक व्यवसाय की वह संचालनात्मक प्रक्रिया है जो कुशल प्रचालनों के लिए आवश्यक वित्त को प्राप्त करने तथा उसका प्रभावशाली ढंग से उपयोग करने हेतु उत्तरदायी होता है। बियरमैन व स्मिथ  (Bierman and Smith) : वित्तीय प्रबन्ध पूँजी के स्रोतों का निर्धारण करने तथा उसके अनुकूलतम उपयोग का मार्ग खोजने वाली विधि है। वेस्टर्न एवं जाइगम  : वित्तीय प्रबन्धन वित्तीय निर्णयन की वह प्रक्रिया है जो व्यक्तिगत मामलों एवं उपक्रम के लक्ष्यों के मध्य मेल स्थापित करती है। उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि वर्तमान समय में वित्तीय प्रबन्धन के अन्तर्गत कोषों को एकत्रित करने के साथ साथ नियोजन, निर्णयन, संचालन, पूॅंजी स्रोतों के निर्धारण एवं अनुकूलतम प्रयोग से घनिष्टता पूर्वक सम्बन्धित है।

वित्तीय प्रबन्धन (Financial management)

वित्तीय प्रबन्धन  (Financial management) से आशय धन (फण्ड) के दक्ष एवं प्रभावी  प्रबन्धन  है ताकि  संगठन  के लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके। वित्त प्रबन्धन का कार्य संगठन के सबसे ऊपरी प्रबन्धकों का विशिष्ट कार्य है। मनुष्य द्वारा अपने जीवन काल में प्रायः दो प्रकार की क्रियाएं सम्पादित की जाती है - आर्थिक क्रियायें तथा अनार्थिक क्रियाएं। आर्थिक क्रियाओं के अर्न्तगत हम उन समस्त क्रियाओं को सम्मिलित करते हैं जिनमें प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से धन की संलग्नता होती है जैसे रोटी, कपड़े, मकान की व्यवस्था आदि। अनार्थिक क्रियाओं के अन्तर्गत पूजा-पाठ, व अन्य सामाजिक व राजनैतिक कार्यों को सम्मिलित किया जा सकता है। जब हम किसी प्रकार का व्यवसाय करते हैं अथवा उद्योग लगाते हैं अथवा फिर कतिपय तकनीकी दक्षता प्राप्त करके किसी पेशे को अपनाते हैं तो हमें सर्वप्रथम वित्त (finance) धन (money) की आवश्यकता पड़ती है जिसे हम पूँजी (capital) कहते हैं। जिस प्रकार किसी मशीन को चलाने हेतु  ऊर्जा  के रूप में तेल, गैस या बिजली की आवश्यकता होती है उसी प्रकार किसी भी आर्थिक सं...

खातों को बन्द करना

खातों को बन्द करना व्यक्तिगत खाते (personal accounts) यह पता लगाने के लिए कि एक विषेश व्यक्ति से क्या लेना है या एक विषेश व्यक्ति को क्या देना है, उसके व्यक्तिगत खाते का शेष निकालना आवश्यक है। इस प्रक्रिया को खाते बन्द करना कहते हैं। एक खाते का शेष निकालने के लिए उसके दोनों पक्षों (डेबिट तथा क्रेडिट) का योग लगाया जाता है। यदि दोनों पक्ष बराबर नहीं होते, तो दोनों पक्षों को बराबर करने के लिए अन्तर की कमी वाले पक्ष में लिख दिया जाता है। कमी वाले पक्ष में लिखने के लिए जो अन्तर इस प्रकार प्राप्त किया जाता है उसे उस खाते का शेष कहते हैं। यदि डेबिट पक्ष का योग क्रेडिट पक्ष के योग से अधिक है तो शेष को श्ठल ठंसंदबम बधकश्लिख कर क्रेडिट पक्ष लिख दिया जाता है। ऐसी दशा में उस शेष को डेबिट शेष कहा जाता है। दूसरे वर्ष के आरम्भ में इस शेष को खाता खोलने समय श्ठल इंसंदबम इधकश्लिख कर डेबिट पक्ष में लिख दिया जाता है। इसी प्रकार से यदि क्रेडिट पक्ष का योग डेबिट पक्ष के योग से अधिक है तो शेष को श्ठल इंसंदबम इधकश्लिखकर क्रेडिट पक्ष में लिख दिया जाता है। इस शेष को क्रेडिट शेश काहा जाता है। वास्तवि...

खतौनी (Posting)

खतौनी (Posting) रोजनामचे  एवं अन्य सहायक पुस्तको से खाताबही में प्रविष्टियां करने की प्रक्रिया को  खतौनी  कहा जाता है। रोजनामचे एवं अन्य सहायक पुस्तकों में दी गई प्रविष्टियों के लिए आधार बनाती है। खतौनी के कार्य के लिए विशेष कुशलता की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह सामान्य प्रकार का कार्य है। रोजनामचे की खतौनी प्रविष्टियों के रोजनामचे में लिखने के पश्चात् खाताबही में खताया जाना चाहिए। अन्य सहायक पुस्त्कों की खतौनी से रोजनामचे की खतौनी आसान है। रोजनामचे के डेबिट पक्ष के धन-राशि स्तम्भ में लिखी गई धनराशि को खाताबही में सम्बन्धित खाते के क्रेडिट पक्ष मे खताया जाता है और क्रेडिट पक्ष के धन-राशि स्तम्भ में लिखी गई धनराशि को खाताबही में सम्बन्धित खाते के क्रेडिट पक्ष में खताया जाता है। खाताबही के विवरण स्तम्भ में खातों के नाम अदल-बदल कर दिए जाते हैं - रोजनामचे के उस खाते का नाम जिसमें कि धन-राशि डेबिट की गई है। खाताबही में दूसरे खाते के क्रेडिट पक्ष के विवरण स्तम्भ में लिखा जाएगा। इसी प्रकार से इसका विपरीत भी सही है। यह निम्नलिखित उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। क्रय पु...

खाताबही का प्रारूप

खाताबही का प्रारूप व्यापार में खाताबही के कई प्रारूप मिलते हैं। सर्वसामान्य प्रारूप में तिथि, सौदे का विवरण, पृष्ठांक और धनराशि के लिए स्तम्भ होते हैं  व्यापारिक आवश्यकताओं के अनुरूप अतिरिक्त घन-राशि स्तम्भ जोड़े जा सकते हैं। प्रारूप का एक वैकल्पिक रूप, जिसे  बैंको  और कुछ व्यवसायिक संस्थाओं मे अपाना जाता है, वह है जिसके खाताबही के पूरे पृष्ठ को छह स्तम्भों में बांट दिया जाता है।  ये स्तम्भ हैं - (1) तिथि, (2) विवरण, (3) पृष्ठांक, (4) डेबिट धन-राशि, (5) क्रेडिट धन-राशि, (6) शेष। इस वैकल्पिक प्रारूप का लाभ यह है कि प्रत्येक सौदे के उपरान्त खाते का शेष अपने आप निकाला जा सकता है शेष ज्ञात करने के लिए वर्ष की समाप्ति तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती हैं।

दोहरी प्रविष्टि प्रणाली

लेखाकरण  में  दोहरी प्रविष्टि प्रणाली  या  दोहरी खतान प्रणाली  (Double-entry system)  बहीखाता  की एक पद्धति है। इसका नाम 'दोहरी प्रविष्टि' इसलिए है क्योंकि इसके अन्तर्गत किसी खाते की प्रत्येक प्रविष्टि के संगत किसी दूसरे खाते में एक विपरीत प्रविष्टि का होना जरूरी है। उदाहरण के लिए, १०० रूपए की कमाई को दर्ज करने के लिए दो प्रविष्टियाँ आवश्यक होंगी- (१) 'कैश' नामक खाते में १०० रूपए की डेबिट प्रविष्टि की जाएगी, तथा (२) 'आय' नामक खाते में १०० रूपये की क्रेडित प्रविष्टि की जाएगी। इसे  हिन्दी  में 'द्वि-अंकन प्रणाली' भी कहते हैं।

खातों के प्रकार एवं लेखा के नियम

खातों के प्रकार प्रत्येक लेनदेन में दो पहलू या पक्ष होते हैं। खाता-बही (Ledger) में प्रत्येक पक्ष का एक खाता बनाया जाता है। खाता (Account) खाता बही (लेजर) का वह भाग है जिसमें व्यक्ति, वस्तुओं अथवा सेवाओं के सम्बन्ध में किए हुए लेनदेनों का सामूहिक विवरण लिखा जाता है। इस प्रकार प्रत्येक खाते की स्थिति का पता लग जाता है कि वह खाता लेनदार (Creditor) है तथा देनदार (Detor)। दोहरी प्रणाली के अनुसार स्रोतों में लेनदेनों को लिखने के लिए खातों के वर्गीकरण को जानना आवश्यक है। खातों के प्रकार व्यक्तिगत खाते (Personal accounts) 1. एक व्यक्ति का खाता, (जैसे राम का खाता, मोहन का खाता, पूंजी खाता) 2. फर्म का खाता (जैसे गुप्ता ब्रदर्स, मै. गणेश प्रसाद राजीव कुमार) अव्यक्तिगत खाते (Impersonal accounts) वास्तविक खाते (real accounts) माल खाता (Goods account), रोकड खाता (cash account) मशीन खाता भवन खाता आदि नाममात्र खाते (nominal accounts) आय के खाते प्राप्त ब्याज खाता कमीशन खाता, आदि व्यय के खाते वेतन खाता किराया खाता मजदूरी खाता ब्याज खाता आदि व्य...

लाभ और हानि खाता क्या है?

लाभ-हानि खाता (Profit And Loss Accounts) इसे शुद्ध लाभ या हानि ज्ञात करने के लिये तैयार किया जाता है। इसमें व्यापार या संस्था के समस्त आगम (Revenue) (आयगत) एवं अप्रत्यक्ष खर्चो (Indirect Expenses) को डेबिट (Debit) पक्ष की ओर दर्शाया जाता है एवं आगम (Revenue) (आयगत) एवं अप्रत्यक्ष आय (Indirect Income) जैसे प्राप्त कमीशन, प्राप्त छूट, प्राप्त ब्याज आदि को क्रेडिट पक्ष की ओर दर्शाया जाता है। एवं व्यापार खाते से लाया गया सकल लाभ क्रेडिट(Credit) पक्ष की ओर और यदि सकल हानि हो तो डेबिट*(Debit) पक्ष की ओर दर्शायी जाती है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि अवास्तविक खातों (Nominal Account) से संबंधित समस्त खातों के शेष लाभ-हानि खाते में लिखा जाता है यदि क्रेडिट शेष हो तो उसे शुद्ध लाभ लिखकर डेविट पक्ष में दर्शाया जाता है। इसके विपरीत यदि डेबिट शेष हो तो शुद्ध हानि लिखकर क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है।

बैलेंस शीट क्या होती है?

संपत्ति, देनदारियों, और पूँजी (Share Capital) के  विवरण को बैलेंस शीट कहते हैं। आम तौर पर इसे कंपनी या संगठन के वित्तीय वर्ष के अंत में जारी किया जाता है. बैलेंस शीट को Profit and Loss Account यानी लाभ हानि खाते के बाद तैयार किया जाता है. बैलेंस शीट में मुख्य रूप से निम्न घटक होते हैं  Current Assets चालू परिसंपत्तियां : मुख्य रूप से नगदी, बैंक  बैलंस, एडवांस, कच्चा माल जैसे मद इसमें आते हैं. Investments निवेश : कंपनी द्वारा किये गए किसी भी तरह के निवेश. Property, Plant and Equipment प्रॉपर्टी, प्लांट तथा इक्विपमेंट :  इन्हें Fixed Assets फिक्स्ड एसेट्स भी कहते हैं. भूमि, भवन, मशीनें, ऑफिस इक्विपमेंट, गाड़ियां फर्नीचर आदि इस मद में गिने जाते हैं. इन्हें Tangible Assets भी कहते हैं. इसका हिंदी अर्थ होगा मूर्त संपत्ति यानी ऐसी संपत्ति जिसे देख छु सकते हैं. Intangible Assets अमूर्त संपत्तियां: ऐसी संपत्ति जिसे देख छू नहीं सकते. कंपनी की गुडविल या साख कंपनी की Intangible Assets अमूर्त संपत्तियां है. इसके अलावा Copyrights कॉपीराइट, Patents पेटेंट,  Trade...