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खातों के प्रकार एवं लेखा के नियम

खातों के प्रकार प्रत्येक लेनदेन में दो पहलू या पक्ष होते हैं। खाता-बही (Ledger) में प्रत्येक पक्ष का एक खाता बनाया जाता है। खाता (Account) खाता बही (लेजर) का वह भाग है जिसमें व्यक्ति, वस्तुओं अथवा सेवाओं के सम्बन्ध में किए हुए लेनदेनों का सामूहिक विवरण लिखा जाता है। इस प्रकार प्रत्येक खाते की स्थिति का पता लग जाता है कि वह खाता लेनदार (Creditor) है तथा देनदार (Detor)। दोहरी प्रणाली के अनुसार स्रोतों में लेनदेनों को लिखने के लिए खातों के वर्गीकरण को जानना आवश्यक है। खातों के प्रकार व्यक्तिगत खाते (Personal accounts) 1. एक व्यक्ति का खाता, (जैसे राम का खाता, मोहन का खाता, पूंजी खाता) 2. फर्म का खाता (जैसे गुप्ता ब्रदर्स, मै. गणेश प्रसाद राजीव कुमार) अव्यक्तिगत खाते (Impersonal accounts) वास्तविक खाते (real accounts) माल खाता (Goods account), रोकड खाता (cash account) मशीन खाता भवन खाता आदि नाममात्र खाते (nominal accounts) आय के खाते प्राप्त ब्याज खाता कमीशन खाता, आदि व्यय के खाते वेतन खाता किराया खाता मजदूरी खाता ब्याज खाता आदि व्य...

भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932

Pranaam साझेदारी का  सामान्य परिचय : दो या दो से अधिक लोग मिलकर कोई लाभपूर्ण व्यापार करते हैं तथा लाभ को आपस में बांटते है साझेदारी कहलाता है . साझेदारी का अर्थ : भारतीय साझेदारी अधिनियम एक अक्टूबर 1932 को जम्मू कश्मीर को छोड़कर सम्पुर्ण भारत में लागू हुआ था .  इस अधिनियम से पुर्व साझेदारी से सम्बंधित प्रावधान भारतीय संविदा ( अनुबंध ) अधिनियम   1872 में दिए गए थे . साझेदारी से आशय व्यावसायिक संगठन के ऐसे स्वरुप से है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति स्वेच्छा से किसी वैधानिक व्यापार को चलने के लिए सहमत होते हैं . व्यवसाय में पूँजी लगाते हैं , प्रबंधकीय योग्यता का सामूहिक प्रयोग करते हैं तथा लाभ को आपस में बांटते हैं .  भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 4 के अनुसार साझेदारी   का   जन्म   अनुबध से होता है किसी स्थिति के कारण नहीं साझेदारी की परिभाषा   ( भारतीय साझेदारी अधिनियम की धारा 4   के अनुसार “ साझेदारी...
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