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Lets Learn GST With Mukesh Parmar...........

What is Goods and Service Tax – GST क्या है?

जीएसटी (GST), भारत के कर ढांचें में सुधार का एक बहुत बड़ा कदम है। वस्तु एंव सेवा कर (Goods and Service Tax) एक अप्रत्यक्ष कर कानून है (Indirect Tax) है। जीएसटी एक एकीकृत कर है जो वस्तुओं और सेवाओं दोनों पर लगेगा। जीएसटी लागू होने से पूरा देश,एकीकृत बाजार में तब्दील हो जाएगा और ज्यादातर अप्रत्यक्ष कर जैसे केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Excise), सेवा कर (Service Tax), वैट (Vat), मनोरंजन, विलासिता, लॉटरी टैक्स आदि जीएसटी में समाहित हो जाएंगे। इससे पूरे भारत में एक ही प्रकार का अप्रत्यक्ष कर लगेगा 

क्यों जरूरी है जीएसटी  – Why GST Bill

 भारत का वर्तमान कर ढांचा (Tax Structure) बहुत ही जटिल है। भारतीय संविधान के अनुसार मुख्य रूप से वस्तुओं की बिक्री पर कर लगाने का अधिकार राज्य सरकार और वस्तुओं के उत्पादन व सेवाओं पर कर लगाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है।  इस कारण देश में अलग अलग तरह प्रकार के कर लागू है, जिससे देश की वर्तमान कर व्यवस्था बहुत ही जटिल है। कंपनियों और छोटे व्यवसायों के लिए विभिन्न प्रकार के कर कानूनों का पालन करना एक मुश्किल होताहै।

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खातों के प्रकार एवं लेखा के नियम

खातों के प्रकार प्रत्येक लेनदेन में दो पहलू या पक्ष होते हैं। खाता-बही (Ledger) में प्रत्येक पक्ष का एक खाता बनाया जाता है। खाता (Account) खाता बही (लेजर) का वह भाग है जिसमें व्यक्ति, वस्तुओं अथवा सेवाओं के सम्बन्ध में किए हुए लेनदेनों का सामूहिक विवरण लिखा जाता है। इस प्रकार प्रत्येक खाते की स्थिति का पता लग जाता है कि वह खाता लेनदार (Creditor) है तथा देनदार (Detor)। दोहरी प्रणाली के अनुसार स्रोतों में लेनदेनों को लिखने के लिए खातों के वर्गीकरण को जानना आवश्यक है। खातों के प्रकार व्यक्तिगत खाते (Personal accounts) 1. एक व्यक्ति का खाता, (जैसे राम का खाता, मोहन का खाता, पूंजी खाता) 2. फर्म का खाता (जैसे गुप्ता ब्रदर्स, मै. गणेश प्रसाद राजीव कुमार) अव्यक्तिगत खाते (Impersonal accounts) वास्तविक खाते (real accounts) माल खाता (Goods account), रोकड खाता (cash account) मशीन खाता भवन खाता आदि नाममात्र खाते (nominal accounts) आय के खाते प्राप्त ब्याज खाता कमीशन खाता, आदि व्यय के खाते वेतन खाता किराया खाता मजदूरी खाता ब्याज खाता आदि व्य

लाभ और हानि खाता क्या है?

लाभ-हानि खाता (Profit And Loss Accounts) इसे शुद्ध लाभ या हानि ज्ञात करने के लिये तैयार किया जाता है। इसमें व्यापार या संस्था के समस्त आगम (Revenue) (आयगत) एवं अप्रत्यक्ष खर्चो (Indirect Expenses) को डेबिट (Debit) पक्ष की ओर दर्शाया जाता है एवं आगम (Revenue) (आयगत) एवं अप्रत्यक्ष आय (Indirect Income) जैसे प्राप्त कमीशन, प्राप्त छूट, प्राप्त ब्याज आदि को क्रेडिट पक्ष की ओर दर्शाया जाता है। एवं व्यापार खाते से लाया गया सकल लाभ क्रेडिट(Credit) पक्ष की ओर और यदि सकल हानि हो तो डेबिट*(Debit) पक्ष की ओर दर्शायी जाती है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि अवास्तविक खातों (Nominal Account) से संबंधित समस्त खातों के शेष लाभ-हानि खाते में लिखा जाता है यदि क्रेडिट शेष हो तो उसे शुद्ध लाभ लिखकर डेविट पक्ष में दर्शाया जाता है। इसके विपरीत यदि डेबिट शेष हो तो शुद्ध हानि लिखकर क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है।

भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932

Pranaam साझेदारी का  सामान्य परिचय : दो या दो से अधिक लोग मिलकर कोई लाभपूर्ण व्यापार करते हैं तथा लाभ को आपस में बांटते है साझेदारी कहलाता है . साझेदारी का अर्थ : भारतीय साझेदारी अधिनियम एक अक्टूबर 1932 को जम्मू कश्मीर को छोड़कर सम्पुर्ण भारत में लागू हुआ था .  इस अधिनियम से पुर्व साझेदारी से सम्बंधित प्रावधान भारतीय संविदा ( अनुबंध ) अधिनियम   1872 में दिए गए थे . साझेदारी से आशय व्यावसायिक संगठन के ऐसे स्वरुप से है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति स्वेच्छा से किसी वैधानिक व्यापार को चलने के लिए सहमत होते हैं . व्यवसाय में पूँजी लगाते हैं , प्रबंधकीय योग्यता का सामूहिक प्रयोग करते हैं तथा लाभ को आपस में बांटते हैं .  भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 4 के अनुसार साझेदारी   का   जन्म   अनुबध से होता है किसी स्थिति के कारण नहीं साझेदारी की परिभाषा   ( भारतीय साझेदारी अधिनियम की धारा 4   के अनुसार “ साझेदारी उन व्यक्तियों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध ह