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वित्तीय प्रबन्धन की प्रकृति

परम्परागत एवं आधुनिक विचारधाराओं के आधार पर वित्तीय प्रबन्ध की प्रकृति एवं विशेषताओं को निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है -

  • केन्द्रीय प्रकृति : व्यवसायिक प्रबन्धन के अन्तर्गत वित्तीय प्रबन्धन ही ऐसा क्षेत्र है, जिसकी प्रकृति केन्द्रीयकृत होती है। आधुनिक औद्योगिक प्रबन्धन में विपणन व उत्पादन कार्यों को हम विकेन्द्रीकृत करके सफल हो सकते हैं किन्तु वित्त कार्य का विकेन्द्रीकरण सम्भव नहीं होता है। अर्थात इसे हम अनेक व्यक्तियों के मध्य विभाजित नहीं कर सकते। चूॅंकि वित्त कार्य में समन्वय व नियंत्रण की स्थिति केन्द्रीयकरण द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है।
  • निर्णयन में सहायक : आधुनिक संदर्भ में वित्तीय प्रबन्धन, सर्वोच्च प्रबन्धन को निर्णय लेने में सहायता पहुॅंचाता है। अर्थात सर्वोच्च प्रबन्धन की सफलता वित्तीय प्रबन्ध के कुशल मार्गदर्शन से ही सम्भव होती हैं।
  • व्यावसायिक समन्वय : विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों को एक सूत्र में बॉंधने का कार्य वित्त के द्वारा ही किया जाता है। विभिन्न क्रियाओं के मध्य समन्वय स्थापित करके हम व्यावसायिक लागतों (Business costs) को उचित सीमाओं में बॉंध सकते हैं। समन्वय के द्वारा उपलब्ध संसाधनों का अनुकूलतम आवंटन (ptimum allocation) तथा अधिकतम उपयोग सम्भव हो सकता है।
  • कार्य निष्पत्ति का मापक : किसी भी संगठन के कार्य निष्पात्ति का मापन हम वित्त के माध्यम से ही कर सकते हैं। वित्तीय निर्णयन का प्रभाव नीति निर्धारण, जोखिम की मात्रा एवं लाभदायकता पर पड़ता है। अर्थात ‘वित्तीय निर्णयन आय की मात्रा तथा व्यावसायिक जोखिम, दोनों तत्वों को प्रभावित करते हैं। तथा इन दोनों कारकों द्वारा सामूहिक रूप से फर्म के मूल्य को निर्धारित किया जाता है।
  • विश्लेषणात्मक एवं व्यापक स्वरूप : परम्परागत वित्तीय प्रबन्धन विगत अनुभव तथा अन्तप्रेरणा से प्रेरित था किन्तु आधुनिक वित्तीय प्रबंधन के अन्तर्गत सांख्यकीय आँकड़ों तथा तथ्यों के आधार पर परिस्थिति विशेष में हानि तथा लाभ का मूल्यांकन करके तदनुरूप निर्णयन द्वारा जोखिम की मात्रा को कम किया जा सकता है। वित्तीय प्रबन्धन का वर्तमान स्वरूप विश्लेषणात्मक (Analytical) है , वर्णनात्मक (Descriptive) नहींI
  • सतत प्रशासनिक क्रिया : वित्तीय प्रबंधन के पारम्परिक स्वरूप में वित्तीय प्रबन्ध का कार्य कोषों की व्यवस्था तक सीमित था, संगठन की स्थापना के आरम्भिक चरण में अथवा पुर्नगठन, के समय में ही वित्तीय प्रबन्धन की महती भूमिका रहती थी। किन्तु वर्तमान युग में वित्तीय प्रबन्धन कार्य एक सतत प्रशासनिक प्रक्रिया है। जो व्यवसाय की स्थापना से लेकर संचालन, तथा समापन तक अनवरत जारी रहता है।

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